Saturday, February 19, 2011

मेरी भव,बाधा हसौ, राधा नागरि सोई।



                              ( बिहारी लाल) 
मेरी भव,बाधा हसौ, राधा  नागरि सोई।
जा तन की झाईं परै स्यामु हरित-दुति होइ।।1।।
मोर-मुकुट की चंद्रिकनु, यौं राजत नंदनंद।
मनु सरि सेखर की अकस, किय सेखर सत चंद।।2।।

सोहत ओढै़ पीत पदु, स्याम सलौने गात ।
मनौ निलमनि,सैल पर, आतपु पर्यौ प्रभात ।।3।।
अधर धरत हरि कैं परत, ओठ डीठि.पट जोति ।
हरित बांस की बांसुरी, इन्द्रधनुश-रंग होति।।4।।

या आनुरागी चित्त की, गति समझय नहिं कोइ।
ज्यौं ज्यौं बूडे़ स्याम रंग, त्यौं उज्जवल होइ।।5।।
तौ लगु या मन- सदन मैं, हरि आवैं किहिं बाट।
विकट जटे जौ लगु निपट, खटैं न कपट-कपाट।।6।।

जगतु जनायौं जिहिं सकलु, सो हरि जान्यौ नांहि।
ज्यौं आंखिनु सबु देखिये, आंखि न देखी जांहि।।7।।
जप,माला,छापा, तिलक सरै न एकौ कामु।
मन.कांचै नाचे वृथा, सांचे रांचे रामु।।8।।
              नीति
दुसह दुराज प्रजानु कौं, क्यौ न बढे़ दुख.दंदु।
अधिक अंधेरौ जग करत, मिलि मावस रवि.चन्दु।।9।।
बसै बराई जासुतन, ताही कौ सनमानु ।
भलौ-भलौ कहि छोड़ियै, खौटैं ग्रह जपु दानु ।।10।।

नर की अरु नल.नीर की, गति एकै करि जोइ।
जोतौ नीचौ ह्वौ  चलै, तेतौ अंचौ होइ।।11।।        
बढ़त.बढ़त संपति,सलिलु, मन सरोजु बढ़ि जाइ।
घटत.घटत सु न फिरि घटै,बरु समूल कुम्हिलाइ।।12।।

जौ.चाहत,चटत न घटै, मैलौ होइ न मित्त।
रज राजसु न छुवाइ तौ, नेह.चीकनौं चित्त।।13।।
बुरौ बुराई जौ तौ, चितु खरौ डरातु ।
ज्यौं निकलंकु मयंकु लखि गनैं लोग उतपातु।।14।।

स्वारथु सुकृतु, न श्रमुवृथा, देखि विहंग विचारि।
बाज,पराऐं पानि परि, पूं पच्छीनु न मारि ।।15।।
             (बिहारी -सतसई से )
प्रस्तुति शंकर वर्मा। शुक्रवर 18 फरवरी 2011 

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