Wednesday, December 22, 2010

बुधवार, 22 दिसंबर 2010




बुधवार, 22 दिसंबर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
दक्षिणायन, शिशिर ऋतु।
बुधवार, 22 दिसंबर 2010



मास : मार्गशीर्ष।
पक्ष : कृष्णपक्ष।
तिथि : प्रतिपदा तिथि सुबह 10 बजकर 15 मिनट तक, इसके बाद द्वितीया तिथि शुरू।
वार : बुधवार।
नक्षत्र : आर्दा नक्षत्र दोपहर 3 बजकर 7 मिनट तक, इसके बाद पुनर्वसु नक्षत्र की शुरुआत।
योग : ब्रहम योग अर्द्धरात्रि 2 बजकर 9 मिनट तक, इसके बाद ऐंद्र योग शुरू।
करण : कौलवकरण दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक, इसके बाद तैतिलकरण शुरू।
ग्रह स्थिति : चंद्रमा दिनरात मिथुन राशि में संचार करेगा। आज से ही राष्ट्रीय पौष शुरू।
प्रस्तुति: शंकर वर्मा।
बुधवार, 22 दिसंबर 2010

बाल साहित्य के सफलतम साहित्यकार


                                   (1936 जन्म.ई. मृत्युः1990 ई)
   जीवन-परिचय 
बाल साहित्य के सफलतम साहित्यकार जय प्रकाश भारती का जन्म सन् 1936 में उत्तर प्रदेश  के मेरठ नगर में हुआ था ।  इनके पिता श्री रधुनाथ सहाय,एडवोकेट मेरठ के पुराने कांग्रेसी और प्रसिद्ध समाजसेवी थे ।  मेरठ विश्वविद्यलय से बी.एस सी.तक अध्ययन करके आप पिता श्री के पदचिन्हों का अनुकरण करते हुए समाज सेवा में लग गए ।  मेरठ में साक्षरता प्रसार के कार्य में आप का उल्लेखनीय योगदान रहा । कई वर्शों तक इन्होंने निःशुल्क प्रौढ़ रात्रि.पाठशाला का संचालन भी किया । सम्पादन.कला विशारद उपाधि लेकर आपने दैनिक प्रभात तथा नव भारत टाइम्स में पत्रकारिता का व्याहारिक प्रशिक्षण भी प्राप्त किया हिन्दी के पत्रकारिता जगत और किशोरोपयोगी  वैज्ञानिक साहित्य के क्षेत्र में इन्होंने सराहनीय कार्य के क्षेत्र में इन्होंने सराहनीय कार्य किया ।  सन् 1990 को इस साहित्यकार का निधन हो गया। प्रस्तुति: शंकर वर्मा। बुधवार, 22 ,दिसम्बर 2010 

Saturday, December 18, 2010

सगुण काव्य धारा की श्रीकृष्ण .

                                         जीवन परिचय,
रसखान सगुण काव्य.धारा की श्रीकृष्ण .भक्ति शाखा के कवि थे। इनका नया नाम इब्राहीम था। इनका जन्म सन्1533 ई में पिहानी.हरदोई  (उ.प्र) में हुआ था और इनका बचपन तालुकेदारी माहौल में सुख से व्यतीत हुआ। वे बाल्यावस्था में ही पिहानी से दिल्ली आए और वहां राजतन्त्र से जुड़ गए। सन्.1555.56 के लगभग दिल्ली में भीषण राज.विप्लव और अकाल के कारण कवि का हृदय दुःखी हो गया जिसके कारण ये ब्रजधाम पधारे। इन्होंने दिल्ली से ब्रज आने की कथा इस प्रकार दी है.
देखि गदर हित,साहिबी,दिल्ली नगर मसान।
छिनहिं बादसा.बंस की ठसक छोरि रसखान।।
प्रेम निकेतन श्री वनहिं आइ गोबर्धन.धाम।
लहावो सरन चित चाहि कै,जुगल सरूप लालम।।
राज विप्लव से व्यथित होकर ये गोवर्धन चले आए और वहां अपना जीवन श्रीकृष्ण  के भजन कीर्तन में समर्पित कर दिया तथा इन्हें गोस्वामी विटठ्ल नाथ जी ने दीक्षा दी।
रसखान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे, उसी दिव्य प्रेम के सहारे जीवनयापन करते हुए सन् 1618 ई में गोलोक वासी हुए इनकी समाधि महावन में आज भी विद्यमान है।
  प्रस्तुति: शंकर वर्मा। शुनि वार, 17 दिसम्बर 2010

Friday, December 17, 2010

सुभद्रा कुमारी चौहान



जीवन-परिचय
सुभद्रा जी का जन्म सन् 1904 ई में प्रयाग के निहालपुर नामक मोहल्ले में हुआ था। पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था। क्रास्थवेस्ट कॉलेज में शिक्षा  प्राप्त करते हुए देश  प्रेम से प्रभावित हुईं और स्वतंत्रता-संग्राम में रूचि लेने लगीं। आपका विवाह खण्डवा निवासी ठा-लक्ष्मण सिंह के साथ हुआ। सुभद्रा जी ने काव्य-रचना के साथ साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेना प्रारम्भ कर दिया। गांधी जी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण इनको अनेक बार कारावास जाना पड़ा।फिर भी ये राष्ट्रीय विचारों एवं गतिविधियों में संलिप्त रहीं और काव्य रचना करती रहीं। आपका देहावसान सन् 1948 ई0 में हुआ। प्रस्तुति: शंकर वर्मा। शुक्रवार, 17 दिसम्बर 2010

Wednesday, December 15, 2010

बुधवार, 15 दिसंबर 2010


बुधवार, 15 दिसंबर 2010
बुधवार, 15 दिसंबर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
बुधवार, 15 दिसंबर 2010



मास : मार्गशीर्ष।
पक्ष : शुक्लपक्ष।
तिथि : नवमी तिथि सुबह 11 बजकर 4 मिनट तक, इसके बाद दशमी तिथि शुरू।
वार : बुधवार।
नक्षत्र : उत्तर भाद्रपद नक्षत्र सुबह 10 बजकर 20 मिनट तक, इसके बाद रेवती नक्षत्र की शुरुआत।
योग : व्यतिपात योग सुबह 11 बजकर 52 मिनट तक, इसके बाद वरियान योग शुरू।
करण : कौलवकरण सुबह 11 बजकर 4 मिनट तक, इसके बाद तैतिलकरण शुरू।
ग्रह स्थिति : चंद्र मीन राशि में, सूर्य वृश्चिक राशि में, मंगल धनु में, बुध धनु में, गुरू मीन में, शुक्र तुला में, शनि कन्या राशि में, राहु धनु में और केतु मिथुन राशि में स्थित है।

प्रस्तुति : वीएचवी। शंकर वर्मा । 15 दिसंबर 2010

Friday, November 19, 2010

शुक्रवार, 19 नवंबर, 2010

पर्व त्यौहार
शुक्रवार, 19 नवंबर, 2010
शुक्रवार, 19 नवंबर, 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
शुक्रवार, 19 नवंबर, 2010


मास : कार्तिक।
पक्ष : शुक्ल।
तिथि : त्रयोदशी तिथि रात 9 बजकर 47 मिनट तक, इसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू।
वार : शुक्रवार।
नक्षत्र : अश्विनी नक्षत्र अर्द्धरात्रि के बाद 5 बजकर 40 मिनट तक, इसके बाद भरणी नक्षत्र की शुरुआत।
योग : व्यतिपात योग अर्द्धरात्रि के बाद 5 बजकर 18 मिनट तक, इसके बाद वरियान योग शुरू।
ग्रह स्थिति : चंद्र मेष राशि में, सूर्य वृश्चिक राशि में, मंगल वृश्चिक में, बुध वृश्चिक में, गुरू कुंभ में, शुक्र तुला में, शनि कन्या राशि में, राहु धनु में और केतु मिथुन राशि में स्थित है।

प्रस्तुति : शंकर वर्मा। शुक्रवार, 19 नवम्बर, 2010।

Monday, November 8, 2010

गुरुवार, 04 नवम्बर 2010


गुरुवार, 04 नवम्बर 2010
गुरुवार, 04 नवम्बर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
रवि दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
गुरुवार, 04 नवम्बर 2010



मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष।
तिथि : त्रयोदशी तिथि दोपहर 3 बजकर 57 मिनट तक, इसके बाद चतुर्दशी तिथि शुरू।
वार : गुरुवार।
नक्षत्र : हस्त नक्षत्र दोपहर 3 बजकर 3 मिनट तक, इसके बाद चित्रा नक्षत्र की शुरुआत।
योग : विष्कुंभक योग शाम 6 बजकर 21 मिनट तक, इसके बाद प्रीति योग शुरू।
ग्रह स्थिति : चंद्रमा दिन-रात कन्या राशि में और अर्द्धरात्रि 1 बजकर 56 मिनट पर तुला राशि में प्रवेश करेगा। राहु काल दोपहर 1 बजकर 30 मिनट से 3 बजे तक। वणिजकरण दोपहर 3 बजकर 57 मिनट तक, इसके बाद विष्टिकरण शुरू।

प्रस्तुति: । शंकर  वर्मा। गुरुवार, 04 नवम्बर 2010

Monday, November 1, 2010

मंगलवार, 02 नवम्बर 2010

पर्व त्यौहार
मंगलवार, 02 नवम्बर 2010
मंगलवार, 02 नवम्बर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
रवि दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
मंगलवार, 02 नवम्बर 2010


मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष।
तिथि : एकादशी ।
वार : मंगलवार।
नक्षत्र : पूर्व फाल्गुनी।
योग : ऐंद्र।
ग्रह स्थिति : चंद्रमा दिन-रात सिंह राशि में संचार करेगा।

प्रस्तुति: शंकर वर्मा। मंगलवार, 02 नवम्बर 2010

सोमवार, 01 नवम्बर 2010

पर्व त्यौहार
सोमवार, 01 नवम्बर 2010
सोमवार, 01 नवम्बर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
रवि दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
सोमवार, 01 नवम्बर 2010



मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष।
तिथि : दशमी तिथि रात 12 बजकर 48 मिनट तक, इसके बाद एकादशी तिथि शुरू।
वार : सोमवार।
नक्षत्र : मघा नक्षत्र रात 9 बजकर 38 मिनट तक, इसके बाद पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र की शुरुआत।
योग : शुक्ल योग सुबह 8 बजकर 28 मिनट तक, इसके बाद ब्रहम योग शुरू। अर्द्धरात्रि 5 बजकर 19 मिनट के बाद ऐंद्र योग शुरू।
ग्रह स्थिति : चंद्रमा दिन-रात सिंह राशि में संचार करेगा। राहु काल सुबह 7 बजकर 30 मिनट से 9 बजे तक। वणिजकरण दोपहर 2 बजकर 5 मिनट तक, इसके बाद विष्टिकरण शुरू।

प्रस्तुति: शंकर वर्मा। सोमवार, 01 नवम्बर 2010

Sunday, October 31, 2010

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

पर्व त्यौहार
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
रवि दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010



मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष।
तिथि : सप्तमी तिथि सुबह 7 बजकर 2 मिनट तक, इसके बाद अष्टमी तिथि अर्द्धरात्रि 5 बजकर 21 मिनट तक और फिर इसके बाद नवमी तिथि शुरू।
वार : शनिवार।
नक्षत्र : पुष्य नक्षत्र अर्द्धरात्रि 12 बजकर 36 मिनट तक, इसके बाद आश्लेषा नक्षत्र की शुरुआत।
योग : साध्य योग दोपहर 2 बजकर 2 मिनट तक, इसके बाद शुभ योग शुरू।
ग्रह स्थिति : अहोई अष्टमी व्रत। चंद्रमा दिन-रात कर्क राशि में संचार करेगा। राहु काल सुबह 9 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक। बवकरण सुबह 7 बजकर 2 मिनट तक, इसके बाद बालवकरण शुरू।

प्रस्तुति: शंकर वर्मा। शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

Friday, October 29, 2010

श्रीराम जन्मभूमि विवाद का इतिहास


श्रीराम जन्मभूमि विवाद का इतिहास
न्यायालय में पिछले छह दशकों से इस बात का मुकदमा चल रहा है कि अयोध्या में हिन्दू मान्यता के अनुसार श्रीराम जन्मस्थान पर मालिकाना हक किसका है। हिन्दू इसे अनादि काल से अपने आस्था के केन्द्र के रूप में मानता आया है, वहीं उस स्थान पर बने ढ़ांचे पर लगे शिलालेख के अनुसार वह इमारत बाबरी मस्जिद थी जिसे बाबर के सेनापति मीरबाकी ने बनवाया।


जानकारी हो कि भारत में वर्तमान न्याय व्यवस्था कायम होने के साथ ही यह विवाद किसी न किसी रूप में न्ययालय के समक्ष बना रहा किन्तु इस पर अंतिम निर्णय न हो सका। स्वतंत्र भारत में भी यह संभवतः सबसे लंबा चलने वाला मुकदमा बन चुका है जो साठ साल में भी निर्णायक स्थिति में नहीं पहुंचा। साहित्य की भाषा में कहें तो इस मुकदमे ने भारत के संविधान को अपने सामने पैदा होते देखा है।


वर्ष 1949 से जारी इस मुकदमें में तमाम दावे पेश किए गए, तमाम जिरह हुई। अपने दावे के पक्ष में हिंदुओं ने 54 और मुस्लिम पक्ष ने 34 गवाह पेश किए। इनमें धार्मिक विद्वान, इतिहासकार और पुरातत्व के जानकार शामिल हैं।
इस मामले में न्यायालय को मुख्यरूप से चार बिन्दुओं को संज्ञान में लेकर अपना निर्णय सुनाना है। पहला विवादित धर्मस्थल पर मालिकाना हक किसका है। दूसरा श्रीराम जन्मभूमि वहीं है या नहीं। तीसरा क्या 1528 में मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनी थी और चौथा यदि ऐसा है तो यह इस्लाम की परम्पराओं के खिलाफ है या नहीं।


वैसे तो सम्पूर्ण अयोध्या मन्दिरों की ही नगरी है, सभी मन्दिर भगवान राम की जीवनलीलाओं से जुड़े हुए हैं। लगभग 130 फीट लम्बा तथा 90 फीट चौड़ा चारदीवारी से घिरा एक स्थान जिसके भीतरी आंगन में तीन गुम्बदों वाला एक ढांचा था, जो दूर से देखने पर मस्जिद जैसा लगता था। मुस्लिम समाज इसी ढांचे को बाबरी मस्जिद कहता आ रहा है, इसके विपरीत हिन्दू समाज इस सम्पूर्ण परिसर को भगवान राम की जन्मभूमि मानता है।


हिन्दू मानता था कि यहाँ कभी एक बड़ा मन्दिर था, जिसे 1528 ई. में मुस्लिम आक्रमणकारी बाबर के आदेश से उसके सेनापति मीरबाकी ने तोड़ा और ढांचे का निर्माण कराया। तब से लेकर आज तक इस भीतरी आंगन वाले परिसर को प्राप्त करने के लिए हिन्दू निरन्तर संघर्षरत रहा है।

नव-स्वतंत्र भारत में अयोध्या विवाद पर एक दृष्टि…
22-23 दिसंबर, 1949 की मध्यरात्रि अयोध्या में शोर मच गया कि जन्मभूमि में भगवान रामलला प्रकट हो गए हैं।
29 दिसम्बर, 1949 को सिटी मजिस्ट्रेट ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के अन्तर्गत ढांचे के भीतरी परिसर को कुर्क करके अयोध्या नगर पालिका के अध्यक्ष बाबू प्रियदत्तराम को उसके अन्दर चल रही पूजा अर्चना के संचालन के लिए रिसीवर नियुक्त कर दिया और रिसीवर का कर्तव्य निर्धारित किया गया कि वे ढांचे के मध्य गुम्बद के नीचे विराजित भगवान श्रीरामलला के विग्रहों की पूजा व भोग की व्यवस्था करेंगे। मुख्य बड़े द्वार को सींखचों से बन्द करके ताला डाल दिया गया।

16 जनवरी, 1950 को गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद की जिला अदालत में रामलला की पूजा अर्चना विधिवत चलने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया। फैजाबाद के तत्कालीन अपर जिला न्यायाधीश एन.एन. चन्द्रा ने इसकी इजाजत दे दी। इसके साथ ही न्यायालय ने वहां रिसीवर भी नियुक्त कर दिया।

वर्ष 1959 में निर्मोही अखाडे़ ने रिसीवर की व्यवस्था समाप्त कर विवादित स्थल को उसे सौंपने के लिए फैजाबाद की ही जिला अदालत में मुकदमा किया।

वर्ष 1961 में सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड और मोहम्मद हाशिम अंसारी समेत आठ अन्य मुस्लिमों ने विवादित धर्मस्थल को मस्जिद घोषित करने और रामलला की मूर्ति हटाने के लिए वाद दायर किया।

वर्ष 1989 में देवकी नन्दन अग्रवाल भी इस मामले से जुड़ गये और उन्होंने विवादित धर्मस्थल को रामलला विराजमान की सम्पत्ति घोषित करने की याचिका उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में दाखिल की।

मामले के शीघ्र निपटारे के लिए केन्द्र सरकार की पहल पर राज्य के महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने अपने आदेश दिनांक 10 जुलाई, 1989 के द्वारा प्रथम चार मुकदमें मौलिक व सामूहिक सुनवाई के लिए उच्च न्यायालय में स्थानान्तरित करा लिए।

इस मामले में सबसे पहली गवाही मोहम्मद अंसारी की 197 पृष्ठ की हुई। अंसारी की गवाही 24 जुलाई से शुरु होकर उसी साल 29 अगस्त 1996 तक चली।
वक्फ बोर्ड की तरफ से सर्वाधिक 288 पृष्ठ की गवाही सुरेश चन्द्र मिश्र की रही जबकि सबसे कम 64 पृष्ठ में रामशंकर उपाध्याय ने अपना बयान दर्ज कराया। कानूनी दांवपेचों में उलझे इस मामले में 06 दिसम्बर 1992 को बड़ा मोड़ आया और विवादित ढांचा ध्वस्त कर दिया गया। ढांचा ध्वस्त होने के बाद केन्द्र सरकार ने सात जनवरी 1993 को 67 एकड़ से अधिक जमीन का अधिग्रहण कर लिया।

अधिग्रहण के इस अधिनियम के खिलाफ सुन्नी वक्फ बोर्ड, अक्षय ब्रह्मचारी, हाफिज महमूद एखलाख और जामियातुल उलेमा ए हिन्द ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय में भेज दिया।

24 अक्टूबर, 1994 को उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या मामले से जुडे सन्दर्भ को राष्ट्रपति को वापस भेज दिया। इसके बाद जनवरी 1995 में इस मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ में फिर से शुरु हो गयी। उच्चतम न्यायालय ने अधिग्रहीत परिसर में यथास्थिति बनाये रखने के आदेश दिये।

मामले को जल्दी निपटाने के लिए उच्च न्यायालय ने मार्च 2002 में प्रतिदिन सुनवाई करने का निर्णय लिया। न्यायालय ने पांच मार्च 2003 को अधिग्रहीत परिसर में पुरातात्विक खुदाई के आदेश दिये। खुदाई 12 मार्च से सात अगस्त 2003 तक चली। उसी वर्ष 22 अगस्त को पुरातत्व विभाग ने अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी।

दावा किया गया था कि पुरातात्विक खुदाई में प्राचीन मूर्तियों और कसौटी के पत्थरों के अवशेष मिले हैं। रिपोर्ट की मुखालफत करने के लिए मुस्लिम पक्ष ने न्यायालय में आठ गवाह पेश किये, जिसमें से छह हिन्दू थे जबकि रिपोर्ट के पक्ष में याची देवकी नन्दन अग्रवाल की ओर से चार गवाह पेश हुए।

11 अगस्त 2006 को मुस्लिम पक्ष की ओर से पुरातात्विक रिपोर्ट के खिलाफ आपत्तियों के सम्बंध में गवाहियों का क्रम समाप्त हो गया। अग्रवाल की ओर से पुरातात्विक रिपोर्ट के पक्ष में 17 अगस्त 2006 से 23 मार्च 2007 तक गवाही चली।

यही नहीं, सन् 1991 में मामले के एक प्रमुख वादी परमहंस रामचन्द्र दास ने अपना वाद वापस ले लिया था इसलिए उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने मूलरुप से चार वादों पर ही सुनवाई की।
26 जुलाई, 2010 को इस मामले की सुनवाई पूरी हुई।

फैसले पर रोक लगाने और बातचीत से मसले का हल निकालने की मांग को लेकर सेवानिवृत्त नौकरशाह रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने उच्च न्यायालय में अर्जी दायर किया। 17 सितम्बर, 2010 को उच्च न्यायालय ने त्रिपाठी की याचिका खारिज कर दी।

त्रिपाठी ने इसी आशय की याचिका उच्चतम न्यायालय में दाखिल की। 28 सितम्बर को शीर्ष अदालत में भी उनकी याचिका खारिज हो गई। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय को मामले का फैसला 30 सितम्बर को 3.30 बजे सुनाने का आदेश दे दिया।

अयोध्या फैसले पर विदेशी मीडिया...


अयोध्या फैसले पर विदेशी मीडिया में रही भ्रम की स्थिति
इस्लामाबाद। पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में श्रीराम जन्मभूमि के मालिकाना हक संबंधी अदालती फैसले पर मुस्लिम संगठनों ने विरोध जताया। विरोध-प्रदर्शन के दौरान मुल्तान और हैदराबाद में भारतीय नेताओं के पुतले भी जलाए गए।


पाकिस्तान के धार्मिक मुस्लिम संगठनों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय की आलोचना की है। मुस्लिम संगठनों के नेताओं ने आरोप लगाया कि 60 साल बाद आया यह फैसला पूरी तरह राजनीतिक दबाव में लिया गया है। धार्मिक मामलों के मंत्री सईद काजमी ने दावा किया कि यह फैसला पक्षपातपूर्ण है।


वहीं पाकिस्तान सहित अन्य देशों में भी प्रकाशित समाचार पत्रों में भ्रम की स्थिति बनी रही। इस्लामाबाद से प्रकाशित ‘डान’ समेत अन्य समाचार पत्रों ने अयोध्या से जुड़े समाचारों को ‘विवादित स्थल बंटा’ शीर्षक के साथ छापा है। हालांकि, ब्रिटेन के दो प्रमुख समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ और ‘द टेलीग्राफ’ ने अयोध्या से संबंधित समाचार के मद्देनजर उत्पन्न संशय की स्थिति को स्वीकार किया है।

मंदिर निर्माण के लिए पूरी भूमि चाहिए : विहिप


मंदिर निर्माण के लिए पूरी भूमि चाहिए : विहिप
नई दिल्ली। अयोध्या विवाद पर विश्व हिंदू परिषद ने कहा है कि राम मंदिर निर्माण के लिए न्यायालय द्वारा हिंदू पक्ष को दी गई भूमि नाकाफी है। इसलिए विवादित भूमि का विभाजन मंजूर नहीं किया जा सकता है।


विहिप के अतंरराष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने कहा कि मंदिर निर्माण के लिए सम्पूर्ण भूमि यानी 70 एकड़ चाहिए। ध्यातव्य है कि 70 एकड़ भूमि में से 2.77 एकड़ क्षेत्रफल विवादित है। 30 सितम्बर को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ का फैसला इसी विवादित भूमि के संदर्भ में है। न्यायालय ने अपने आदेश में 2.77 एकड़ विवादित भूमि को मामले के तीन पक्षकारों में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया है।


श्री सिंहल ने कहा कि न्यायालय ने भूमि का बंटवारा कर दिया है जबकि अपील करने वाले पक्षों में से किसी ने भी अपनी याचिका में ऐसी कोई मांग नहीं की थी। उन्होंने मंदिर निर्माण के लिए न्यायालय द्वारा रामलला विराजमान पक्ष को दी गई भूमि के संबंध में कहा कि इसका क्षेत्रफल इतना कम है कि इतनी भूमि में तो राम जन्म स्थल यानी गर्भ गृह भी पूरा नहीं बन सकेगा।


उन्होंने कहा कि उन्हें निश्चित मॉडल के मंदिर से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा कि निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी गई जमीन भी गलत है और मंदिर केवल 70 एकड़ भूमि पर ही बनाया जा सकता है।


श्री सिंहल ने कहा कि हमें पूरा विश्वास है कि उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय के फैसले से इतर फैसला देगा। उन्होंने कहा- ‘मुझे नहीं लगता कि न्यायालय से बाहर इसका कोई हल खोजा जा सकता है। मामला शीर्ष अदालत में ही जाना चाहिए।’

पूरे परिसर में बनेगा भव्य राम मंदिर : विहिप


पूरे परिसर में बनेगा भव्य राम मंदिर : विहिप
 विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या के पूरे रामजन्मभूमि परिसर में श्रीराम मंदिर निर्माण की बात कही है। परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री डॉ. प्रवीणभाई तोगड़िया ने कुल्लू में संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि विश्व हिंदू परिषद अपने तौर पर राम मंदिर के निर्माण के लिए तैयार है तथा शीघ्र ही परिणाम सामने आएंगे।


डा. तोगडिया ने कहा कि अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली, कर्मस्थली व क्रीड़ास्थली है। इसलिए पूरे 67 एकड़ भूमि पर भव्य राम मंदिर बनेगा। इस कार्य के लिए पूरा हिन्दू समाज एकसाथ खड़ा है। उन्होंने बताया कि मंदिर निर्माण के लिए संत समाज दो तीन दिनों के भीतर कई अहम फैसला लेने जा रहा है।


उल्लेखनीय है कि अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय पर विचार विमर्श करने के लिए बुधवार को विहिप एवं संतों की अयोध्या में बैठक होनी है। बैठक में राम मंदिर निर्माण के लिए भविष्य की रणनीति पर भी चर्चा होने की संभावना है।


इस दौरान विहिप नेता ने संघ की तुलना प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी से करने पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अपनी टिप्पणी देने से पहले लोगों को भारत की संस्कृति का अध्ययन करना चाहिए। देश में भयंकर कष्ट और हर प्रकार की प्राकृतिक आपदा के दौरान देश का प्रत्येक स्वयंसेवक समाज सेवा के लिए आगे आता है।"

श्रीराम जन्मभूमि.......


अयोध्या का बहुप्रतीक्षित फैसला आज
नई दिल्ली। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ श्रीराम जन्मभूमि के स्वामित्व विवाद मामले का बहुप्रतीक्षित फैसला आज 3.30 बजे सुनाएगी। फैसले के मद्देनजर लखनऊ व अयोध्या सहित देश भर में सुरक्षा व्यवस्था सख्त कर दी गई है। संभावना है कि यह फैसला चाढ़े चार बजे तक आ जाएगा।


यह फैसला उच्च न्यायालय की त्रि-सदस्यीय विशेष पूर्ण पीठ सुनाएगी। इस पीठ में न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस.यू. खान, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा शामिल हैं। इस विशेष पीठ में शामिल न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा के लिए खास बात यह है कि वह आज फैसला सुनाने के बाद कल यानी 1 अक्टूबर को सेवानिवृत्त हो जाएंगे। यह उनके जीवन का शायद अंतिम अदालती फैसला साबित हो।


देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोग नजरे लगाए हुए हैं कि इस मामले में 60 वर्षों बाद आने वाला फैसला आखिर क्या होगा ? लोग यह जानने को इच्छुक हैं कि इस विवादित जमीन पर मालिकाना हक किसका है ? इसका सभी लोग बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। सभी को 3.30 बजे का इन्तजार है, जब न्यायालय की कार्यवाही शुरू होगी।


न्यायालय को मुख्य रूप से 4 बिंदुओं को संज्ञान में लेकर फैसला सुनाना है। पहला- विवादित भूमि पर मालिकाना हक किसका है ? दूसरा- श्रीराम जन्मभूमि वही है या नहीं ? तीसरा- क्या वर्ष 1528 में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ था ? चौथा- और यदि ऐसा है तो यह इस्लाम के खिलाफ है या नहीं ?

अयोध्या अयोध्यापुरी....


अयोध्या का वैभव- भाग 1
कौशल नाम से प्रसिद्ध एक बहुत बड़ा जनपद है, जो सरयू नदी के किनारे बसा है। वह धन-धान्य से सम्पूर्ण, सुखी और समृद्धशाली है। उसी जनपद में अयोध्यापुरी नाम की नगरी है, जो समस्त लोकों में विख्यात है। उसे स्वयं मनु ने बनवाया और बसाया था।


अयोध्यापुरी बारह योजन चौड़ी थी। बाहर के जनपदों में जाने वाला राजमार्ग दोनों ओर से वृक्षावलियों से विभूषित था। राजमार्ग पर प्रतिदिन जल का छिड़काव होता था और फूल बिखेरे जाते थें। वह पुरी बड़े- बड़े फाटकों और किवाड़ों से सुशोभित थी। जिनमें यंत्र तथा अस्त्र-शस्त्र संचित थे। अयोध्या में सभी प्रकार के शिल्पी निवास करते थे। वहां ऊंची- ऊंची अटालिकाएं थी, जिनके ऊपर ध्वज फहराते थे। सैंकड़ों तोपों के भण्डार थे। घोड़े, हाथी, गाय-बैल और ऊंट आदि उपयोगी पशुओं से वह भरी-पूरी थी।

कर देने वाले समस्त नरेशों के समुदाय अयोध्या को सदा घेरे रहते थे। वहां के महलों का निर्माण नाना प्रकार के रत्नों से हुआ था। वहां का जल ईख के समान मीठा था।

सम्पूर्ण वेदों के पारंगत श्रेष्ठ ब्राह्मणों से अयोध्यापुरी सुशोभित होती थी। राजा दशरथ के समय अयोध्या पूरे वैभव पर थी। राजा अपनी प्रजा का विशेष ध्यान रखते थें। प्रजा भी उनका आदर करती थी। राजा दशरथ इक्ष्वाकुकुल के अतिरथी (जो दस हजार महारथियों के साथ अकेले ही युद्ध करने में समर्थ हों) थे।

रामावतार के समय अयोध्या जी की शोभा का वर्णन गोस्वामी तुलसीदासजी के शब्दों में :-

जद्यपि अवध सदैव सुहावनि, रामपुरी मंगलमय पावनी।
तदपि प्रित कै रीत सुहाई, मंगल रचना रची बनाई।।
शोभा दशरथ भवन की को कवि बरनै पार।
जहां सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार।।

Thursday, October 28, 2010

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010





शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010 युगाब्द 5112, विक्रम संवत् 2067,
शालिवाहन शक (शक संवत्) 1932,
संवत्सर नाम : शोभन
रवि दक्षिणायन, हेमंत ऋतु।
शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010



मास : कार्तिक कृष्ण पक्ष।
तिथि : षष्ठी तिथि सुबह 8 बजकर 17 मिनट तक, इसके बाद सप्तमी तिथि शुरू।
वार : शुक्रवार।
नक्षत्र : पुनर्वसु नक्षत्र अर्द्धरात्रि 1 बजकर 30 मिनट तक, इसके बाद पुष्य नक्षत्र की शुरुआत।
योग : सिद्धि योग दोपहर 4 बजकर 19 मिनट तक, इसके बाद साध्य योग शुरू।
ग्रह स्थिति : चंद्रमा दिन-रात मिथुन राशि में और शाम 7 बजकर 39 मिनट पर कर्क राशि में प्रवेश करेगा। राहु काल सुबह 10 बजकर 30 मिनट से 12 बजे तक। वणिजकरण सुबह 8 बजकर 17 मिनट तक, इसके बाद विष्टिकरण शुरू।

प्रस्तुति:शंकर वर्मा  शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010.

रामलला की है रामजन्मभूमि

रामलला की है रामजन्मभूमि
संजय तिवारी
ऐतिहासिक फैसला गया। शांति की अलोकप्रिय और अप्रासंगिक अपीलों और फैसला रुकवाने की इक्का दुक्का कोशिशों के बीच आखिरकार आज उस ऐतिहासिक विवाद में अदालत की मध्यम पायदान ने अपना फैसला सुना दिया जिसे सुनने के लिए साढ़े तीन बजे लगभग सारा देश ठहर गया था। नौ हजार पृष्ठों में पसरे फैसले की एक एक लाइन -"जहां रामलला विराजमान, वही जन्मस्थान।"
यहां अदालत द्वारा जिस जन्मस्थान का जिक्र किया गया है उससे आशय रामजन्मभूमि से है जहां अभी अस्थाई रूप से मंदिर है. इसी विवादित स्थल पर ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने दो-एक के बहुमत से इस बात पर अपनी मुहर लगा दी कि जहां रामलला विराजमान हैं वहां विराजमान रहेंगे. जस्टिस अग्रवाल, जस्टिस धर्मवीर शर्मा और जस्टिस एस यू खान की खण्डपीठ ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए देश को उस मझधार से पार कर दिया है जहां चार सदियों से कमोबेश यह देश अटका हुआ था। लेकिन फैसला एकदम से एकतरफा भी नहीं है।
अपने दस हजार पेज के फैसले में उच्च न्यायालय ने संपूर्ण फैसला क्या दिया है लेकिन शाम के पांच बजे इस मुद्दे पर जिरह कर रहे वकीलों ने फैसले की जो जानकारी दी उसका सार यही है कि जन्मस्थान रामलला का है लेकिन सरकार द्वारा अधिग्रहित जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया जाए जिसमें से एक हिस्से पर मंदिर निर्माण हो, दूसरा हिस्सा मुसलमानों को दिया जाए और तीसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. 2002 से शुरू हुई अदालती कार्यवाही में कुल 90 दिन सुनवाई हुई जिसमें चार प्रमुख मुकदमों में दलीलें पेश की गयी. ये चार वाद थे- भगवान श्रीराम विराजमान बनाम राजेन्द्र सिंह, गोपाल सिंह विशारद बनाम जहूर अहमद, निर्मोही अखाड़ा बनाम बाबू प्रियदत्त राम अन्य और सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड बनाम गोपाल विसारद अन्य. इनमें से चौथे वाद को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया जो सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाम गोपाल सिंह विशारद का था. फैसला बाकी तीन के संदर्भ में आया है. इन तीन वादों में भी मुख्य फैसला भगवान श्रीरामचंद्र विराजमान बनाम राजेन्द्र सिंह से जुड़ा है जिसके संदर्भ में उच्च न्यायालय ने कहा है कि रामलला जहां विराजमान हैं, वह उन्हीं का स्थान है।
पहले वाद के तहत जो मुख्य सवाल सामने रखे गये थे उसमें अदालत को यह निर्णय करना था कि क्या विवादित स्थल आस्था, विश्वास या परम्परा के अनुसार भगवान राम का जन्मस्थान है? यदि हां, तो इसका प्रभाव? महत्वपूर्ण फैसला इसी एक बिंदु पर आया है. हाइकोर्ट ने आस्था, विश्वास और परंपरा तथा ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर पाया है कि जिस स्थान को लेकर विवाद है और जहां बाबरी मस्जिद निर्मित की गयी थी वह वास्तव में हिन्दुओं के पुरुषार्थ पुरुष रामचंद्र से ताल्लुक रखती है जो धर्मग्रंथों और साक्ष्यों के अनुसार अयोध्या में ही पैदा हुए थे. अदालत के इस फैसले से वाद संख्या तीन में उठाये गये सवाल का भी जवाब मिल जाता है जिसमें इस बात पर निर्णय करना था कि क्या विवादित संपत्ति मस्जिद है, जिसे बाबर द्वारा बनवाये जाने पर बाबरी मस्जिद कहा जाता है? जाहिर है अदालत ने माना है कि इस विवादित संपत्ति को वर्तमान में मस्जिद नहीं माना जा सकता क्योंकि इसे बाबर ने ही मुसलमानों को वक्फ किया था, इसका कोई साक्ष्य सामने आया नहीं है. संभवत: इसी आधार पर हाईकोर्ट ने सुन्नी सेन्ट्रल वक्फ बोर्ड का दावा ही खारिज कर दिया. क्योंकि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बतौर वादी जो दावे किये थे वे बहुत ही कमजोर थे और इस ऐतिहासिक विवाद में एक तरह से बचकाने दावे किये थे।

सुन्नी वक्फ बोर्ड को पंद्रह प्रमुख बिन्दुओं पर हाईकोर्ट के सामने अपना पक्ष रखना था जिसमें कई कमजोर कड़ियां हैं. सुन्नी वक्फ बोर्ड को यह साबित करना था कि क्या 1949 तक वह विवादित भवन के कब्जे में रहा जहां से उसे बेदखल कर दिया गया? अगर बाबरी मस्जिद का वक्फ नहीं हुआ था तो सुन्नी वक्फ बोर्ड किस आधार पर यह दावा कर सकता है कि संपत्ति उसकी है? फिर वह इस बात को भी नकार नहीं सकता था कि विवादित स्थल पर हिन्दू एक जमाने से पूजा अर्चना करते रहे हैं. अगर 23 दिसंबर 1949 को विवादित परिसर में रामलला की मूर्ति और पूजा का सामान रख दिया गया था तो फिर उस भवन को मस्जिद कहने का क्या औचित्य बचता था? एक और महत्वपूर्ण बिन्दु पर सेन्ट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड को अपना पक्ष प्रस्तुत करना था वह यह कि क्या विवादित ढांचे में लगे खम्भों, जिन पर हिन्दू देवी देवताओं के चित्र अंकित हैं, के कारण विवादित भवन को मस्जिद की संज्ञा दी जा सकती है? और आखिरी बात यह कि जब वहां कोई ढांचा ही नहीं है तो उसे बाबरी मस्जिद कैसे कहा जा सकता है? भावनात्मक रूप से वक्फ बोर्ड ने चाहे जो दलीलें दी हों लेकिन कानून और शरीयत के दायरे में इन पेचींदे सवालों का संभवत: उनके पास कोई उत्तर नहीं रहा होगा।

बहरहाल, लंबी कानूनी लड़ाई, घृणित राजनीति और दुखदायी सांप्रदायिक दुर्घटनाओं से गुजरते हुए अयोध्या के विवादित परिसर पर हाईकोर्ट का फैसला दोनों पक्षों के लिए संतोषजनक ही दिखाई दे रहा है. राममंदिर आंदोलन में हिन्दुओं की ओर से प्रतिनिधि संगठन होने का दावा करनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी इसका स्वागत किया है तो शिवसेना भी फैसले पर संतोष जाहिर किया है. अन्य मुस्लिम समुदाय से जुड़े लोगों ने अभी तक तो कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन सेन्ट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड के जफरयाब जिलानी ने कहा है कि वे सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. हाईकोर्ट ने खुद कहा है कि तीन महीने के भीतर इनमें से कोई भी पक्ष सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है. ऐसे में जिलानी कोई असहज बात नहीं कर रहे हैं. लेकिन सवाल अब यह है कि दोनों में से कोई भी पक्ष सर्वोच्च न्यायालय क्यों जाएगा? अगर विवादित परिसर में एक हिस्सा मुस्लिम समुदाय को दे दिया गया है तो क्या हिन्दू समुदाय आगे आकर इसे स्वीकार नहीं कर सकता? या फिर रामलला के जन्मस्थान को अगर न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है तो क्या मुस्लिम समाज के प्रतिनिधि इस फैसले को लागू करवाने के लिए आगे नहीं सकते? लेकिन ऐसा शायद ही हो. क्योंकि हिन्दुओं की राजनीति करनेवाले जिस धड़े को इसका लाभ नहीं मिला वे भी लड़ाई जारी रखने की बात करेंगे और वे भी जो मुस्लिम जमात की राजनीति का शौक रखते होंगे. अगर ये दोनों धड़े असफल हो गये तो मानिएगा कि फैसला हो गया, नहीं तो देश को एक और लंबी कानूनी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा।

((साभार: www.visfot.com, 30/09/2010)