Friday, October 29, 2010

अयोध्या अयोध्यापुरी....


अयोध्या का वैभव- भाग 1
कौशल नाम से प्रसिद्ध एक बहुत बड़ा जनपद है, जो सरयू नदी के किनारे बसा है। वह धन-धान्य से सम्पूर्ण, सुखी और समृद्धशाली है। उसी जनपद में अयोध्यापुरी नाम की नगरी है, जो समस्त लोकों में विख्यात है। उसे स्वयं मनु ने बनवाया और बसाया था।


अयोध्यापुरी बारह योजन चौड़ी थी। बाहर के जनपदों में जाने वाला राजमार्ग दोनों ओर से वृक्षावलियों से विभूषित था। राजमार्ग पर प्रतिदिन जल का छिड़काव होता था और फूल बिखेरे जाते थें। वह पुरी बड़े- बड़े फाटकों और किवाड़ों से सुशोभित थी। जिनमें यंत्र तथा अस्त्र-शस्त्र संचित थे। अयोध्या में सभी प्रकार के शिल्पी निवास करते थे। वहां ऊंची- ऊंची अटालिकाएं थी, जिनके ऊपर ध्वज फहराते थे। सैंकड़ों तोपों के भण्डार थे। घोड़े, हाथी, गाय-बैल और ऊंट आदि उपयोगी पशुओं से वह भरी-पूरी थी।

कर देने वाले समस्त नरेशों के समुदाय अयोध्या को सदा घेरे रहते थे। वहां के महलों का निर्माण नाना प्रकार के रत्नों से हुआ था। वहां का जल ईख के समान मीठा था।

सम्पूर्ण वेदों के पारंगत श्रेष्ठ ब्राह्मणों से अयोध्यापुरी सुशोभित होती थी। राजा दशरथ के समय अयोध्या पूरे वैभव पर थी। राजा अपनी प्रजा का विशेष ध्यान रखते थें। प्रजा भी उनका आदर करती थी। राजा दशरथ इक्ष्वाकुकुल के अतिरथी (जो दस हजार महारथियों के साथ अकेले ही युद्ध करने में समर्थ हों) थे।

रामावतार के समय अयोध्या जी की शोभा का वर्णन गोस्वामी तुलसीदासजी के शब्दों में :-

जद्यपि अवध सदैव सुहावनि, रामपुरी मंगलमय पावनी।
तदपि प्रित कै रीत सुहाई, मंगल रचना रची बनाई।।
शोभा दशरथ भवन की को कवि बरनै पार।
जहां सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार।।

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