रामनरेश त्रिपाठी
अतुलनीय जिनके प्रताप का,
साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर ।
घूम-घूम कर देख चुका है,
जिनकी निर्मल कीर्ति निशाकर ।।
देख चुके हैं जिनका वैभव ,
येनभ के अनन्त तारागण।
अगणित बार सुन चुका है नभ,
जिनका विजय घोष रण गर्जन।।1।।
शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,
जिनके दिव्य देश का मस्तक ।
गूंज रहीं है सकल दिशाए ,
जिनके जय गीतों से अब तक ।।
जिनकी महिमा का है अविरल,
साक्षी सत्य. रूप हिम गिरि वर।
उतरा करते थे विमान .दल,
जिसके विस्तृत वक्ष स्थल पर।।2।।
सागर निज छाती पर जिसके ,
अगणित अर्णव पोत उठाकर ।
पहुंचाया करता था प्रमुदित,
भूमंडल के सकल तटों पर।।
नदियां जिसकी यश धारा सी,
बहनी हैं अब भी निशि वासर।
ढूंढो,उनके चरण चिन्ह भी ,
पओगे तुम इनके तट पर।।3।।
विषुवत् रेखा का वासी जो ,
जीता है नित हांफ हाफ कर।
रखता है अनुराग अलौकिक,
वह भी अपनी मातृ भूमि पर।।
ध्रुववासी जो हम में हम में ,
जी लेता है कांप कांप कर ।
वह भी अपनी मातृ भूमि पर,
कर देता है प्राण निछावार।।4।।
तुम हो हे प्रिय बन्धु स्वर्ग सी,
सुखद सकल विभवों की आकर।
धरा शिरोमणि मातृ भूमि में,
धन्य हुए हो जीवन पाकर ।।
तुम जिनका जल अन्न ग्रहण कर ,
बडे़ हए लेकर जिसकी रज।
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसकों हे वीरो के वंशज।।5।।
जब तक साथ एक भी दम हो,
हो अवशिष्ट एक भी धड़कन।
रखों आत्म गौव से उंची,
पलकें उचा सिर उचां मन।
एक बूंद भी रक्त शेष हो ,
जब तक मन से हे सत्रुंजय ।
दीन वचन मुख से न उचारों,
मानों नहीं मृत्यु का भय ।।6।।
निर्भय स्वागत करों मृत्यु का ,
मृत्यु एक है विश्राम स्थल ।
निवन यहा फिर चलता है,
धारण कर वन जीवन संबन ।
मृत्यु एक सरिता है जिसमें,
श्रम से कातर जीव नहाकर।
फिर जिवन धारण करता है,
काया रूपी वस्त्र बहाकर ।।7।।
सच्चा प्रेम वहीं है जिसकी ,
तृप्ति बलि पर हो निर्भर ।,
त्याग विना निष्प्राण प्रेम है,
अमल असीत त्याग से विलसित।
अत्मा के विकास से जिसमें ,
मनुष्यता हाती है विकसित।।8।।
(स्वप्न)
प्रस्तुति शंकर वर्मा शनिवार 15 जनवरी 2011
इस कविता को पोस्ट करने के लिए आपको बहुत - बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteएक सुझाव -
शायद यह पंक्ति - धृव वासी जो हिम में हम में
इस प्रकार होनी चाहिए -
धृववासी जो हिम में तम में
Yeh kaunsi language hai braj,awadhi or khadi boli
Deleteआदित्य प्रताप वन्देमातरम@ सुझाव देने और उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteत्याग बिना निष्प्राण प्रेम है.
ReplyDeleteकरो प्रेम पर प्राण न्योछावर.
देश प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है ,
ReplyDeleteअमल असीम त्याग से विलसित,
Jiv jaha se phir chalta hai,dharan Kar nav Jeevan sambal
ReplyDeleteसम्पूर्ण कविता में जगह जगह मात्रा संशोधन अपेक्षित है यथा-बहतीं,पाओगे(3),हुए(5),ऊॅचा,शत्रुंजय,(6)जीवन(7)इत्यादि।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteWah Bahut khoob!
ReplyDeletePlease read it again and carefully it has many mistakes. 🈂️
ReplyDeleteAaj ye Kavita dubara pdhkr bhut achha lga...Bhut bhut dhanyabad isko post krne ke liye...Adbhut..Atulniye
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